श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 26: प्रकृति के मूलभूत सिद्धान्त  »  श्लोक 41
 
 
श्लोक  3.26.41 
 
 
रूपमात्राद्विकुर्वाणात्तेजसो दैवचोदितात् ।
रसमात्रमभूत्तस्मादम्भो जिह्वा रसग्रह: ॥ ४१ ॥
 
अनुवाद
 
  अग्नि और दृष्टि की परस्पर क्रिया से एक दैवीय व्यवस्था के तहत स्वाद तन्मात्र की उत्पत्ति होती है। इस स्वाद से जल का निर्माण होता है और स्वाद को ग्रहण करने वाली जीभ भी प्रकट होती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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