श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  3.25.20 
 
 
प्रसङ्गमजरं पाशमात्मन: कवयो विदु: ।
स एव साधुषु कृतो मोक्षद्वारमपावृतम् ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  प्रत्येक विद्वान व्यक्ति अच्छी तरह जानता है कि सांसारिक आसक्ति ही आत्मा का सबसे बड़ा बन्धन है। लेकिन अगर वही आसक्ति, आत्म-साक्षात्कार प्राप्त संतों के प्रति हो तो मुक्ति प्राप्ति का द्वार खुल जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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