न ह्यस्य वर्ष्मण: पुंसां वरिम्ण: सर्वयोगिनाम् ।
विश्रुतौ श्रुतदेवस्य भूरि तृप्यन्ति मेऽसव: ॥ २ ॥
अनुवाद
शौनक आगे बोले : भगवान से अधिक कोई और जानने वाला नहीं है। और न ही कोई उनसे अधिक पूजनीय है और न ही कोई उनसे अधिक सिद्ध योगी है। इसलिए वे वेदों के स्वामी है, और उन पर सुनना ही इन्द्रियों के लिए सच्चा सुख है।