श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 25: भक्तियोग की महिमा  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.25.2 
 
 
न ह्यस्य वर्ष्मण: पुंसां वरिम्ण: सर्वयोगिनाम् ।
विश्रुतौ श्रुतदेवस्य भूरि तृप्यन्ति मेऽसव: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  शौनक आगे बोले : भगवान से अधिक कोई और जानने वाला नहीं है। और न ही कोई उनसे अधिक पूजनीय है और न ही कोई उनसे अधिक सिद्ध योगी है। इसलिए वे वेदों के स्वामी है, और उन पर सुनना ही इन्द्रियों के लिए सच्चा सुख है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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