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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 24: कर्दम मुनि का वैराग्य
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श्लोक 43
श्लोक
3.24.43
मनो ब्रह्मणि युञ्जानो यत्तत्सदसत: परम् ।
गुणावभासे विगुण एकभक्त्यानुभाविते ॥ ४३ ॥
अनुवाद
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उन्होंने अपना मन परब्रह्म पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् में लगाया जो कार्य-कारण से परे हैं, जो तीनों गुणों को उत्पन्न करने वाले हैं, लेकिन उन तीनों गुणों से परे हैं, और जिन्हें केवल अटूट भक्तिमार्ग से समझा जा सकता है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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