हे समस्त जीवात्माओं के स्वामी! आज मैं आपसे कुछ निवेदन करना चाहता हूँ। चूँकि आपने मेरे पितृ ऋण से मुक्त कर दिया है और मेरी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण हो चुकी हैं, इसलिए अब मैं संन्यास लेना चाहता हूँ। इस गृहस्थ जीवन को त्यागकर शोकरहित होकर सदैव अपने हृदय में आपको धारण करते हुए सर्वत्र घूमना चाहता हूँ।