श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 24: कर्दम मुनि का वैराग्य  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  3.24.32 
 
 
त्वां सूरिभिस्तत्त्वबुभुत्सयाद्धा
सदाभिवादार्हणपादपीठम् ।
ऐश्वर्यवैराग्ययशोऽवबोध-
वीर्यश्रिया पूर्तमहं प्रपद्ये ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, आपके चरणकमल उस कोष के समान हैं जो सदैव परम सत्य को जानने के लिए इच्छुक ऋषि-मुनियों की आराधना के पात्र हैं। आप ऐश्वर्य, वैराग्य, दिव्य यश, ज्ञान, शक्ति और सौन्दर्य से परिपूर्ण हैं, इसलिए मैं आपके चरणकमलों की शरण में आता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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