श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 24: कर्दम मुनि का वैराग्य  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  3.24.28 
 
 
बहुजन्मविपक्‍वेन सम्यग्योगसमाधिना ।
द्रष्टुं यतन्ते यतय: शून्यागारेषु यत्पदम् ॥ २८ ॥
 
अनुवाद
 
  अनेक जन्मों के बाद, परिपक्व योगी, योग में पूर्ण समाधि प्राप्त करके, एकांत स्थानों में श्रीकृष्ण के चरणकमलों को देखने का प्रयास करते रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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