ये मे स्वधर्मनिरतस्य तप:समाधि-
विद्यात्मयोगविजिता भगवत्प्रसादा: ।
तानेव ते मदनुसेवनयावरुद्धान्
दृष्टिं प्रपश्य वितराम्यभयानशोकान् ॥ ७ ॥
अनुवाद
कर्दम मुनि ने कहा- मैं तप, ध्यान और कृष्णभक्ति के अपने धार्मिक जीवन का पालन करते हुए भगवान के आशीर्वाद प्राप्त किये। हालाँकि तुमने अभी तक इन उपलब्धियों का अनुभव नहीं किया है, जो कि भय और दुख से मुक्त हैं, मैं ये सब तुम्हें दे दूँगा क्योंकि तुम मेरी सेवा में लगी हो। अब उन्हें देखो। मैं तुम्हें उनकी दिव्य सुंदरता को देखने के लिए दिव्य दृष्टि दे रहा हूँ।