श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 22: कर्दममुनि तथा देवहूति का परिणय  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.22.7 
 
 
दिष्टय‍ा त्वयानुशिष्टोऽहं कृतश्चानुग्रहो महान् ।
अपावृतै: कर्णरन्ध्रैर्जुष्टा दिष्ट्योशतीर्गिर: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  सौभाग्य से मुझे आपके उपदेश प्राप्त हुए हैं और इस प्रकार आपने मेरे ऊपर महान कृपा की है। मैं भगवान का आभारी हूँ कि मैं आपके शुद्ध शब्दों को खुले कानों से सुन रहा हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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