तव सन्दर्शनादेवच्छिन्ना मे सर्वसंशया: ।
यत्स्वयं भगवान् प्रीत्या धर्ममाह रिरक्षिषो: ॥ ५ ॥
अनुवाद
अब उनके दर्शन मात्र से मेरे सारे सन्देह दूर हो गए हैं, क्योंकि उन्होंने अनुकम्पा करके उस राजा के कर्तव्य के बारे में सुस्पष्ट रूप से व्याख्या की है जो अपनी प्रजा की रक्षा को लेकर इच्छुक रहता है।