श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 22: कर्दममुनि तथा देवहूति का परिणय  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.22.12 
 
 
उद्यतस्य हि कामस्य प्रतिवादो न शस्यते ।
अपि निर्मुक्तसङ्गस्य कामरक्तस्य किं पुन: ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  स्वतः प्राप्त होने वाली भेंट का अनादर करना, मोह-माया से बिल्कुल मुक्त व्यक्ति के लिए भी उचित नहीं है, फिर विषय-वासनाओं में आसक्त व्यक्ति के लिए तो और भी नहीं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.