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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 21: मनु-कर्दम संवाद
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श्लोक 41
श्लोक
3.21.41
मत्तद्विजगणैर्घुष्टं मत्तभ्रमरविभ्रमम् ।
मत्तबर्हिनटाटोपमाह्वयन्मत्तकोकिलम् ॥ ४१ ॥
अनुवाद
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इस प्रदेश में मतवाले पक्षी अपने सुरम्य संगीत से चारों ओर गुंजायमान कर रहे थे। नशे में धुत भौंरे मँडरा रहे थे, प्रफुल्लित मोर गर्व से नाच रहे थे और खुशमिजाज कोयलें एक-दूसरे को पुकार रही थीं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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