किरीटिनं कुण्डलिनं शङ्खचक्रगदाधरम् ।
श्वेतोत्पलक्रीडनकं मन:स्पर्शस्मितेक्षणम् ॥ १० ॥
अनुवाद
श्रीभगवान अपने मुकुट और कुंडल से सुशोभित थे। उनके तीन हाथों में अपना अलग शंख, चक्र और गदा था और चौथे हाथ में एक श्वेत कुमुदिनी थी। वे खुश और मुस्कुराते हुए सब ओर देख रहे थे और उनकी झलक सभी भक्तों के दिलों को आकर्षित कर रही थी।