विदुर उवाच
स्वायम्भुवस्य च मनोर्वंश: परमसम्मत: ।
कथ्यतां भगवन् यत्र मैथुनेनैधिरे प्रजा: ॥ १ ॥
अनुवाद
विदुर ने कहा: स्वयंभू मनु की वंश परंपरा अति सम्माननीय थी। हे पूजनीय ऋषि, मेरी आपसे प्रार्थना है कि इस वंश का वर्णन करें जिसकी संतानें संभोग के द्वारा बढ़ीं।