श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 20: मैत्रेय-विदुर संवाद  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  3.20.8 
 
 
सूत उवाच
हरेर्धृतक्रोडतनो: स्वमायया
निशम्य गोरुद्धरणं रसातलात् ।
लीलां हिरण्याक्षमवज्ञया हतं
सञ्जातहर्षो मुनिमाह भारत: ॥ ८ ॥
 
अनुवाद
 
  सूत गोस्वामी आगे कहते हैं - भरत के वंशज विदुर भगवान की कथा सुनकर बहुत प्रसन्न हुए क्योंकि भगवान ने अपनी दिव्य शक्ति से वराह का रूप धारण करके पृथ्वी को समुद्र के गर्भ से खेल-खेल में ऊपर लाने (लीला) और हिरण्याक्ष का उदासीन भाव से वध करने का कार्य किया था। इसके बाद विदुर मैत्रेय से इस प्रकार बोले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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