श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 20: मैत्रेय-विदुर संवाद  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.20.4 
 
 
किमन्वपृच्छन्मैत्रेयं विरजास्तीर्थसेवया ।
उपगम्य कुशावर्त आसीनं तत्त्ववित्तमम् ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  पवित्र स्थानों की यात्रा करके विदुर सभी इच्छाओं और लालसाओं से मुक्त हो गये। अंततः वे हरिद्वार पहुँचे जहाँ आत्मज्ञान के ज्ञाता एक महान ऋषि से उनकी मुलाकात हुई और उन्होंने उनसे कुछ प्रश्न पूछे। इसलिए, शौनक ऋषि ने पूछा कि विदुर ने मैत्रेय से और क्या-क्या प्रश्न किये?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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