श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 20: मैत्रेय-विदुर संवाद  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.20.23 
 
 
देवोऽदेवाञ्जघनत: सृजति स्मातिलोलुपान् ।
त एनं लोलुपतया मैथुनायाभिपेदिरे ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  तब ब्रह्माजी ने द्वार-भाग से आसुरी गणों की उत्पत्ति की। वे सब अत्यंत कामुक थे। कामवासना में अधिक होने के कारण वे संभोग के लिए उनके निकट आ खड़े हुए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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