श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 2: भगवान् कृष्ण का स्मरण  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  3.2.5 
 
 
पुलकोद्‍‌भिन्नसर्वाङ्गो मुञ्चन्मीलद्‍दृशा शुच: ।
पूर्णार्थो लक्षितस्तेन स्‍नेहप्रसरसंप्लुत: ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  विदुर ने ध्यान दिया कि उदधव में परम आनंद के कारण समस्त दिव्य शारीरिक परिवर्तन दिखाई दे रहे हैं और वह अपनी आँखों से वियोग के आँसुओं को पोंछने का प्रयास कर रहे हैं। इस तरह विदुर समझ गए कि उदधव ने प्रभु के प्रति अगाध प्रेम पूर्णरूपेण ग्रहण कर लिया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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