को वा अमुष्याङ्घ्रि सरोजरेणुं
विस्मर्तुमीशीत पुमान् विजिघ्रन् ।
यो विस्फुरद्भ्रूविटपेन भूमे-
र्भारं कृतान्तेन तिरश्चकार ॥ १८ ॥
अनुवाद
ऐसा कौन है जिसने एक बार भी उनके चरणकमलों की धूल को सूंघा और उसे भुला सका हो? कृष्ण ने अपनी भौहों की पत्तियों को विस्तारित करके उन लोगों पर मृत्यु की तरह आघात किया है जो पृथ्वी पर बोझ बन गए थे।