श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 2: भगवान् कृष्ण का स्मरण  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  3.2.13 
 
 
यद्धर्मसूनोर्बत राजसूये
निरीक्ष्य द‍ृक्स्वस्त्ययनं त्रिलोक: ।
कार्त्स्‍न्येन चाद्येह गतं विधातु-
रर्वाक्सृतौ कौशलमित्यमन्यत ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  महाराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उपस्थित सभी देवता, चाहे वे उच्चतर, मध्य या अधोलोक के हों, भगवान कृष्ण के अद्भुत शारीरिक स्वरूप को देखकर विस्मय में पड़ गए। उन्होंने सोचा कि निश्चित रूप से भगवान कृष्ण, मनुष्यों के निर्माता ब्रह्मा की सर्वोत्कृष्ट रचना हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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