देवस्य मायया स्पृष्टा ये चान्यदसदाश्रिता: ।
भ्राम्यते धीर्न तद्वाक्यैरात्मन्युप्तात्मनो हरौ ॥ १० ॥
अनुवाद
भगवान की माया के वशीभूत व्यक्तियों के शब्द किसी भी परिस्थिति में उन लोगों की बुद्धि को भ्रमित नहीं कर सकते जो पूर्ण रूप से भगवान के शरण में समर्पित हैं।