स तं निशाम्यात्तरथाङ्गमग्रतो
व्यवस्थितं पद्मपलाशलोचनम् ।
विलोक्य चामर्षपरिप्लुतेन्द्रियो
रुषा स्वदन्तच्छदमादशच्छ्वसन् ॥ ७ ॥
अनुवाद
जब राक्षस ने कमल की पंखुड़ियों के समान आंखों वाले देवता को सुदर्शन चक्र से लैस उसके सामने दिये गये आसन पर खड़े हुए देखा तो क्रोध के कारण उसका शरीर कांपने और उसे गुस्सा आने लगा। वह साँप की तरह फुफकारने लगा और तीव्र क्रोध में अपने होठों को दाँतों से काटने लगा।