स तदा लब्धतीर्थोऽपि न बबाधे निरायुधम् ।
मानयन् स मृधे धर्मं विष्वक्सेनं प्रकोपयन् ॥ ४ ॥
अनुवाद
यद्यपि हिरण्याक्ष को अपने निःशस्त्र शत्रु पर बिना किसी बाधा के प्रहार करने का उत्तम अवसर मिल गया था, फिर भी उसने द्वंद्व युद्ध के नियम का सम्मान किया और इस प्रकार परमेश्वर श्रीकृष्ण के क्रोध को भड़का दिया।