मैत्रेय उवाच
एवं हिरण्याक्षमसह्यविक्रमं
स सादयित्वा हरिरादिसूकर: ।
जगाम लोकं स्वमखण्डितोत्सवं
समीडित: पुष्करविष्टरादिभि: ॥ ३१ ॥
अनुवाद
श्री मैत्रेय जी ने कहा- इतने भयावह असुर हिरण्याक्ष को मारने के बाद आरम्भिक वाराह अवतार भगवान हरि अपने धाम वापस आ गए जहाँ हमेशा उत्सव चलता रहता है। ब्रह्मा और सभी देवताओं ने भगवान की प्रशंसा की।