वृक्णे स्वशूले बहुधारिणा हरे:
प्रत्येत्य विस्तीर्णमुरो विभूतिमत् ।
प्रवृद्धरोष: स कठोरमुष्टिना
नदन् प्रहृत्यान्तरधीयतासुर: ॥ १५ ॥
अनुवाद
जब श्री भगवान की चक्र से असुर का त्रिशूल टुकड़े-टुकड़े हो गया तो वह बहुत क्रोधित हुआ। फिर वह भगवान की ओर बढ़ा और ऊँची आवाज में दहाड़ते हुए, श्रीवत्स के चिह्न से चिह्नित भगवान की चौड़ी छाती पर अपनी सख्त मुट्ठी से प्रहार किया। फिर वह दृष्टि से ओझल हो गया।