पुनर्गदां स्वामादाय भ्रामयन्तमभीक्ष्णश: ।
अभ्यधावद्धरि: क्रुद्ध: संरम्भाद्दष्टदच्छदम् ॥ १६ ॥
अनुवाद
तब श्री भगवान जी ने अपना क्रोध प्रदर्शित करते हुए उस राक्षस की तरफ़ झपट्टा मारा जो ग़ुस्से के चलते अपने होठ चबा रहा था। उसने फ़िर से अपनी गदा उठाई और उसे बार-बार घुमाने लगा।