श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 18: भगवान् वराह तथा असुर हिरण्याक्ष के मध्य युद्ध  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  3.18.11 
 
 
एते वयं न्यासहरा रसौकसां
गतह्रियो गदया द्रावितास्ते ।
तिष्ठामहेऽथापि कथञ्चिदाजौ
स्थेयं क्‍व यामो बलिनोत्पाद्य वैरम् ॥ ११ ॥
 
अनुवाद
 
  निश्चय ही, मैंने रसातलवासियों की निधि चुरा ली है और सारी लाज-शर्म खो दी है। यद्यपि तुम्हारी पराक्रमी गदा से प्रताड़ित होकर मुझे कष्ट हो रहा है, तथापि मैं कुछ काल तक यहीं जल में रहूँगा क्योंकि तुम जैसे पराक्रमी शत्रु से वैर ठान कर अब मेरे लिए अन्यत्र जाने के लिए कोई ठिकाना भी नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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