श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 17: हिरण्याक्ष की दिग्विजय  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.17.21 
 
 
तं वीक्ष्य दु:सहजवं रणत्काञ्चननूपुरम् ।
वैजयन्त्या स्रजा जुष्टमंसन्यस्तमहागदम् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  हिरण्याक्ष का स्वभाव काबू करना कठिन था। उसके पैरों में सोने के पायल थे, उसके गले में विशाल माला लटक रही थी और उसने अपने एक कंधे पर अपनी विशाल गदा रखी हुई थी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.