श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 17: हिरण्याक्ष की दिग्विजय  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  3.17.20 
 
 
हिरण्याक्षोऽनुजस्तस्य प्रिय: प्रीतिकृदन्वहम् ।
गदापाणिर्दिवं यातो युयुत्सुर्मृगयन् रणम् ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  छोटा भाई हिरण्याक्ष हर समय बड़े भाई के कार्यों से खुश रहता था। हिरण्यकशिपु को प्रसन्न करने के उद्देश्य से ही उसने कंधे पर गदा रखी और लड़ने की इच्छा से पूरे ब्रह्मांड की यात्रा की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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