श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 17: हिरण्याक्ष की दिग्विजय  »  श्लोक 16
 
 
श्लोक  3.17.16 
 
 
तावादिदैत्यौ सहसा व्यज्यमानात्मपौरुषौ ।
ववृधातेऽश्मसारेण कायेनाद्रिपती इव ॥ १६ ॥
 
अनुवाद
 
  पुराने ज़माने में आए ये दोनों असुर कुछ ही समय में अपनी असाधारण शारीरिक विशेषताओं के लिए जाने जाने लगे थे; उनके शरीर इस्पात की तरह कड़े थे और वो दो बड़े पहाड़ों की तरह बढ़ने लगे थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.