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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 17: हिरण्याक्ष की दिग्विजय
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श्लोक 12
श्लोक
3.17.12
रुदन्तो रासभत्रस्ता नीडादुदपतन् खगा: ।
घोषेऽरण्ये च पशव: शकृन्मूत्रमकुर्वत ॥ १२ ॥
अनुवाद
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गधों के रेंकने की आवाज़ से डरकर पक्षी अपने घोंसलों से चीखते हुए उड़ने लगे, और गोशालाओं और जंगलों में पशुओं ने मल-मूत्र त्याग करना शुरू कर दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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