श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 16: वैकुण्ठ के दो द्वारपालों, जय-विजय को मुनियों द्वारा शाप  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.16.7 
 
 
यत्सेवया चरणपद्मपवित्ररेणुं
सद्य:क्षताखिलमलं प्रतिलब्धशीलम् ।
न श्रीर्विरक्तमपि मां विजहाति यस्या:
प्रेक्षालवार्थ इतरे नियमान् वहन्ति ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान ने आगे कहा : चूँकि मैं अपने भक्तों का सेवक हूँ, इसलिए मेरे कमल जैसे पवित्र चरणों में इतनी शक्ति है कि वे तुरन्त ही सभी पापों को धो डालते हैं। मुझे ऐसा स्वभाव प्राप्त हुआ है कि देवी लक्ष्मी कभी मेरा साथ नहीं छोड़तीं, यद्यपि मेरे मन में उनके प्रति आसक्ति का भाव नहीं है। अन्य लोग उनके सौन्दर्य की प्रशंसा करते हैं और उनकी थोड़ी सी भी कृपा पाने के लिए पवित्र व्रत रखते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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