यन्नामानि च गृह्णाति लोको भृत्ये कृतागसि ।
सोऽसाधुवादस्तत्कीर्तिं हन्ति त्वचमिवामय: ॥ ५ ॥
अनुवाद
किसी सेवक ने जो गलती की है उसकी सज़ा उसके स्वामी को मिलना बहुत आम है। ठीक वैसे ही जैसे श्वेत कुष्ठ से किसी के शरीर के एक अंग में हो जाने पर वो सारी त्वचा को दूषित कर देता है।