श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 16: वैकुण्ठ के दो द्वारपालों, जय-विजय को मुनियों द्वारा शाप  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  3.16.31 
 
 
मयि संरम्भयोगेन निस्तीर्य ब्रह्महेलनम् ।
प्रत्येष्यतं निकाशं मे कालेनाल्पीयसा पुन: ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  भगवान ने जय और विजय नामक दोनों वैकुण्ठ निवासियों को आश्वासन दिया कि क्रोध में रहकर योग का अभ्यास करने से तुम ब्राह्मणों की अवज्ञा करने के पाप से मुक्त हो जाओगे और बहुत कम समय में मेरे पास लौट आओगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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