यं वानयोर्दममधीश भवान् विधत्ते
वृत्तिं नु वा तदनुमन्महि निर्व्यलीकम् ।
अस्मासु वा य उचितो ध्रियतां स दण्डो
येऽनागसौ वयमयुङ्क्ष्महि किल्बिषेण ॥ २५ ॥
अनुवाद
हे प्रभु, आप इन दोनों निर्दोष व्यक्तियों को या हमें भी जो दण्ड देना चाहें उसे हम बिना किसी शिकायत के स्वीकार करेंगे। हम जानते हैं कि हमने दो निर्दोष व्यक्तियों को शाप दिया है।