श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 16: वैकुण्ठ के दो द्वारपालों, जय-विजय को मुनियों द्वारा शाप  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  3.16.25 
 
 
यं वानयोर्दममधीश भवान् विधत्ते
वृत्तिं नु वा तदनुमन्महि निर्व्यलीकम् ।
अस्मासु वा य उचितो ध्रियतां स दण्डो
येऽनागसौ वयमयुङ्‌क्ष्महि किल्बिषेण ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, आप इन दोनों निर्दोष व्यक्तियों को या हमें भी जो दण्ड देना चाहें उसे हम बिना किसी शिकायत के स्वीकार करेंगे। हम जानते हैं कि हमने दो निर्दोष व्यक्तियों को शाप दिया है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.