श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 16: वैकुण्ठ के दो द्वारपालों, जय-विजय को मुनियों द्वारा शाप  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.16.10 
 
 
ये मे तनूर्द्विजवरान्दुहतीर्मदीया
भूतान्यलब्धशरणानि च भेदबुद्ध्या ।
द्रक्ष्यन्त्यघक्षतद‍ृशो ह्यहिमन्यवस्तान्
गृध्रा रुषा मम कुषन्त्यधिदण्डनेतु: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  ब्राह्मण, गायें और लाचार प्राणी मेरे ही शरीर हैं। वे लोग जिनकी बुद्धि उनके अपने पाप से खराब हो चुकी है, वे इन्हें मुझसे अलग समझते हैं। वे विषैले सांपों के समान हैं और पापियों के अधीक्षक यमराज के गिद्ध जैसे दूतों की चोंचों से क्रोध में नोच डाले जाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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