तेषां सुपक्वयोगानां जितश्वासेन्द्रियात्मनाम् ।
लब्धयुष्मत्प्रसादानां न कुतश्चित्पराभव: ॥ ७ ॥
अनुवाद
जो लोग साँस-प्रक्रिया को साधकर मन और इन्द्रियों को काबू में कर लेते हैं और इस तरह से अनुभवी प्रौढ़ योगी बन जाते हैं, उनकी इस जगत में हार नहीं होती। ऐसा इसलिए है कि योग में इस तरह की सिद्धि के कारण उन्हें आपकी कृपा प्राप्त हो जाती है।