श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 15: ईश्वर के साम्राज्य का वर्णन  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.15.2 
 
 
लोके तेनाहतालोके लोकपाला हतौजस: ।
न्यवेदयन् विश्वसृजे ध्वान्तव्यतिकरं दिशाम् ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  दिति के गर्भ के बल से सारे लोकों में सूर्य और चन्द्रमा की रोशनी कम हो गई और अलग-अलग लोकों के देवता उस बल से परेशान होकर ब्रह्माण्ड के सृजनकर्ता ब्रह्मा से पूछने लगे कि चारों दिशाओं में अंधेरे का ये फैलाव क्या है?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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