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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 15: ईश्वर के साम्राज्य का वर्णन
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श्लोक 18
श्लोक
3.15.18
पारावतान्यभृतसारसचक्रवाक-
दात्यूहहंसशुकतित्तिरिबर्हिणां य: ।
कोलाहलो विरमतेऽचिरमात्रमुच्चै
र्भृङ्गाधिपे हरिकथामिव गायमाने ॥ १८ ॥
अनुवाद
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जब भौंरों का राजा भगवान् की महिमा का बखान करते हुए ऊँचे स्वर में गुंजारता है तो कबूतर, कोयल, सारस, चक्रवाक, हंस, तोता, तीतर और मोर का शोर तुरन्त थम जाता है। ये दिव्य पक्षी सिर्फ़ भगवान् की महिमा सुनने के लिए अपना गाना बंद कर देते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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