यत्र नै:श्रेयसं नाम वनं कामदुघैर्द्रुमै: ।
सर्वर्तुश्रीभिर्विभ्राजत्कैवल्यमिव मूर्तिमत् ॥ १६ ॥
अनुवाद
उन वैकुण्ठ लोकों में कई वन हैं जो अति शुभ हैं। उन वनों के पेड़ कल्पवृक्ष हैं जो सभी ऋतुओं में फूलों और फलों से लदे रहते हैं क्योंकि वैकुण्ठ लोक में सब कुछ आध्यात्मिक और साकार होता है।