श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.14.4 
 
 
श्रद्दधानाय भक्ताय ब्रूहि तज्जन्मविस्तरम् ।
ऋषे न तृप्यति मन: परं कौतूहलं हि मे ॥ ४ ॥
 
अनुवाद
 
  मेरा मन बहुत ही जिज्ञासु हो गया है, इसलिए भगवान के प्रकट होने की कथा सुनकर मुझे सन्तोष नहीं हो रहा है। इसलिए, कृपया इस श्रद्धालु भक्त से और अधिक कहें।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.