श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  3.14.32 
 
 
अथोपस्पृश्य सलिलं प्राणानायम्य वाग्यत: ।
ध्यायञ्जजाप विरजं ब्रह्म ज्योति: सनातनम् ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  इसके बाद उस ब्राह्मण ने पानी में स्नान किया और समाधि में जाकर नित्य तेज का ध्यान किया। साथ ही, अपने मुँह में पवित्र गायत्री मंत्र का जप करते हुए अपनी वाणी को नियंत्रित किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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