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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 3: यथास्थिति
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अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण
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श्लोक 31
श्लोक
3.14.31
स विदित्वाथ भार्यायास्तं निर्बन्धं विकर्मणि ।
नत्वा दिष्टाय रहसि तयाथोपविवेश हि ॥ ३१ ॥
अनुवाद
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पत्नी के इरादे को समझकर, उन्हें वह वर्जित कार्य करना ही पड़ा और तब पूज्य प्रारब्ध को नमन करके वे उसके साथ एकांत में लेट गए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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