हसन्ति यस्याचरितं हि दुर्भगा:
स्वात्मन्-रतस्याविदुष: समीहितम् ।
यैर्वस्त्रमाल्याभरणानुलेपनै:
श्वभोजनं स्वात्मतयोपलालितम् ॥ २८ ॥
अनुवाद
अभागे मूर्ख लोग यह नहीं जानते कि वह अपने में ही तल्लीन रहते हैं, उन पर हँसते हैं। ऐसे मूर्ख शरीर को, जिसे कुत्ते तक नाक भौं सिकोड़कर खा जाते हैं, कपड़े, गहने, माला और लेप से सजाने-संवारने में लगे रहते हैं।