श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  3.14.26 
 
 
न यस्य लोके स्वजन: परो वा
नात्याद‍ृतो नोत कश्चिद्विगर्ह्य: ।
वयं व्रतैर्यच्चरणापविद्धा-
माशास्महेऽजां बत भुक्तभोगाम् ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  देवता महादेव किसी को भी अपना संबंधी नहीं मानते, इसके बावजूद कोई भी ऐसा नहीं है जो उनसे संबंधित न हो। वो किसी को भी न तो अधिक अनुकूल मानते हैं और न ही निंदनीय। हम उनके त्याग दिए भोजन की सम्मानपूर्वक पूजा करते हैं, और वो जिसका अनादर करते हैं उसके प्रति भी हम शिष्यवत होकर सहर्ष स्वीकारते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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