न यस्य लोके स्वजन: परो वा
नात्यादृतो नोत कश्चिद्विगर्ह्य: ।
वयं व्रतैर्यच्चरणापविद्धा-
माशास्महेऽजां बत भुक्तभोगाम् ॥ २६ ॥
अनुवाद
देवता महादेव किसी को भी अपना संबंधी नहीं मानते, इसके बावजूद कोई भी ऐसा नहीं है जो उनसे संबंधित न हो। वो किसी को भी न तो अधिक अनुकूल मानते हैं और न ही निंदनीय। हम उनके त्याग दिए भोजन की सम्मानपूर्वक पूजा करते हैं, और वो जिसका अनादर करते हैं उसके प्रति भी हम शिष्यवत होकर सहर्ष स्वीकारते हैं।