श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  3.14.21 
 
 
न वयं प्रभवस्तां त्वामनुकर्तुं गृहेश्वरि ।
अप्यायुषा वा कार्त्स्‍न्येन ये चान्ये गुणगृध्नव: ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  हे गृहलक्ष्मी, हम न तो तुम्हारे जैसा काम कर सकते हैं, न ही तुम्हारे किए उपकारों का बदला चुका सकते हैं, चाहे हम जीवन भर या मृत्यु के बाद भी काम करते रहें। तुमसे उऋण होना उन लोगों के लिए भी असंभव है जो निजी गुणों के प्रशंसक होते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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