न वयं प्रभवस्तां त्वामनुकर्तुं गृहेश्वरि ।
अप्यायुषा वा कार्त्स्न्येन ये चान्ये गुणगृध्नव: ॥ २१ ॥
अनुवाद
हे गृहलक्ष्मी, हम न तो तुम्हारे जैसा काम कर सकते हैं, न ही तुम्हारे किए उपकारों का बदला चुका सकते हैं, चाहे हम जीवन भर या मृत्यु के बाद भी काम करते रहें। तुमसे उऋण होना उन लोगों के लिए भी असंभव है जो निजी गुणों के प्रशंसक होते हैं।