श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 14: संध्या समय दिति का गर्भ-धारण  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.14.10 
 
 
दितिरुवाच
एष मां त्वत्कृते विद्वन् काम आत्तशरासन: ।
दुनोति दीनां विक्रम्य रम्भामिव मतङ्गज: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  उस स्थान पर रूपवती दिति ने अपनी कामना प्रकट की- हे पंडित, कामदेव अपने बाण लेकर मुझे उसी तरह बलपूर्वक सता रहा है जैसे कि पागल हाथी केले के पेड़ को हिलाकर परेशान करता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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