दितिरुवाच
एष मां त्वत्कृते विद्वन् काम आत्तशरासन: ।
दुनोति दीनां विक्रम्य रम्भामिव मतङ्गज: ॥ १० ॥
अनुवाद
उस स्थान पर रूपवती दिति ने अपनी कामना प्रकट की- हे पंडित, कामदेव अपने बाण लेकर मुझे उसी तरह बलपूर्वक सता रहा है जैसे कि पागल हाथी केले के पेड़ को हिलाकर परेशान करता है।