श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 13: वराह भगवान् का प्राकट्य  »  श्लोक 9
 
 
श्लोक  3.13.9 
 
 
ब्रह्मोवाच
प्रीतस्तुभ्यमहं तात स्वस्ति स्ताद्वां क्षितीश्वर ।
यन्निर्व्यलीकेन हृदा शाधि मेत्यात्मनार्पितम् ॥ ९ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी ने कहा, हे प्रिय पुत्र, हे जगत के स्वामी, मैं तुमसे अत्यधिक प्रसन्न हूं और तुम्हारे व तुम्हारी पत्नी दोनों के कल्याण की कामना करता हूं। तुमने मेरे आदेशों का पालन करने के लिए अपने हृदय से बिना किसी शर्त के मेरे शरण में आ गए हो।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.