श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 13: वराह भगवान् का प्राकट्य  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  3.13.10 
 
 
एतावत्यात्मजैर्वीर कार्या ह्यपचितिर्गुरौ ।
शक्त्याप्रमत्तैर्गृह्येत सादरं गतमत्सरै: ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  हे वीर, तुम्हारा उदाहरण पिता-पुत्र के रिश्ते में बहुत उपयुक्त है। बड़ों की ऐसी पूजा करना अपेक्षित है। जो ईर्ष्या की सीमा से परे और विवेकशील हो, वह अपने पिता के आदेशों को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार करता है और उन्हें अपनी पूरी क्षमता से पूरा करता है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.