एतावत्यात्मजैर्वीर कार्या ह्यपचितिर्गुरौ ।
शक्त्याप्रमत्तैर्गृह्येत सादरं गतमत्सरै: ॥ १० ॥
अनुवाद
हे वीर, तुम्हारा उदाहरण पिता-पुत्र के रिश्ते में बहुत उपयुक्त है। बड़ों की ऐसी पूजा करना अपेक्षित है। जो ईर्ष्या की सीमा से परे और विवेकशील हो, वह अपने पिता के आदेशों को ख़ुशी-ख़ुशी स्वीकार करता है और उन्हें अपनी पूरी क्षमता से पूरा करता है।