श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 3: यथास्थिति  »  अध्याय 12: कुमारों तथा अन्यों की सृष्टि  »  श्लोक 51
 
 
श्लोक  3.12.51 
 
 
अहो अद्भुतमेतन्मे व्यापृतस्यापि नित्यदा ।
न ह्येधन्ते प्रजा नूनं दैवमत्र विघातकम् ॥ ५१ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मा जी ने अपने आप से कहा: अरे! यह एक विचित्र बात है कि मेरे सर्वत्र फैले हुए होने पर भी पूरे ब्रह्मांड में जनसंख्या अपर्याप्त है। इस दुर्भाग्य के पीछे भाग्य ही एकमात्र कारण है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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